जानकारी
माउंट आबू शहर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित देलवाड़ा जैन मंदिर, इस क्षेत्र और पूरे भारत में जैनियों के लिए एक सम्मानिय तीर्थ स्थल है। दिलवाड़ा जैन मंदिर प्रकृति की गोद में स्थित हैं, जो चारों ओर से हरी-भरी पहाड़ियों और आम के पेड़ों से घिरा है। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी ईस्वी के बीच किया गया था। पर्यटकों की नियमित आमद के साथ-साथ जो लगातार बढ़ रही है, हर साल धर्मनिष्ठ जैनियों द्वारा इसका दौरा किया जाता है। कहा जाता है कि सफेद संगमरमर के मंदिर जैन तीर्थंकरो को समर्पित हैं।
दूर से देखने पर किसी को आश्चर्य हो सकता है कि इन मंदिरों को उनकी सुंदरता के लिए इतना सम्मान क्यों दिया जाता है। यद्यपि मंदिर बाहर से साधारण प्रतीत होते हैं, जबकी उनके अंदर की कलात्मक नक़्क़ाशी के कारनामों अचंभित देते है। अविश्वसनीय रूप से अलंकृत संगमरमर के पत्थर की नक्काशी और मंदिर की छतों और स्तंभों पर सटीक नक्काशी आपकी आँखो में अविश्वसनीय खुशी भर देती है।
छत पर अलंकृत सोने की पत्ती का काम है, और छत के चित्रों के बारीक विवरण की सराहना करने के लिए संभवतः दूरबीन की एक जोड़ी (मंदिर परिसर के अंदर फोटोग्राफी निषिद्ध है) के साथ ज़ूम इन करने की आवश्यकता होगी। चित्रों में जैन इतिहास और पौराणिक कथाओं की कहानियों को दर्शाया गया है। राजस्थान भर में अन्य जैन मंदिर में दिलवाड़ा मंदिर अपनी स्थापत्य कलाकारी का एक बेजोड़ नमूना हैं।
ये मंदिर केवल स्मारक ही नहीं हैं बल्कि पूरी तरह कार्यात्मक मंदिर हैं जहां जैन अनुनायियो नियमित रूप से प्रार्थना करने के लिए आते है। मंदिरों में स्नान करने की सुविधा है, जो ‘पूजा’ (प्रार्थना) करने के लिए एक आवश्यक पूर्वापेक्षा है। सर्दियों के महीनों में, स्नान के लिए स्नान सुविधाओं को सौर ऊर्जा से गर्म किया जाता है।
पांच मंदिरों की अपनी विशिष्ट पहचान है। वे सभी महत्वपूर्ण तीर्थंकरों को समर्पित हैं।
विमल वसाही: भगवान ऋषभदेव।
लूना वसाही: भगवान नेमिनाथ।
पिथलहार: भगवान ऋषभदेव
पार्श्वनाथ: भगवान पार्श्वनाथ।
महावीर स्वामी: भगवान महावीर स्वामी
इनमें विमल वसाही और लूना वसाही सबसे प्रसिद्ध हैं।
विमल वसाही
विमल वसाही मंदिर एक हजार से अधिक वर्षो से इस तपोभूमि का साक्षी रहा है। यह गुजरात के चालुक्य वंश द्वारा स्थापित किया गया था। मूर्ति की ऑखो में असली हीरे लगाये गए है। एवं बहुमूल्य हार से यह भव्य मूर्ति सूसज्जित है।
यह सबसे पुराना मंदिर है जिसे 1031 में सोंलकी राजा भीमदेव के महामंत्री विमलशाह ने बनवाया था।
लूना वसाही
यह मंदिर बाहर से देखने में विमल वसाही जैसा दिखता है। इस भव्य मंदिर का निर्माण 1230 में दो पोरवाड भाईयों, वास्तुपाल और तेजपाल ने किया जो गुजरात के वाहेला के शाशक थें इस मंदिर की विषेशता यह है कि यहॉ 10 हाथीयों का निर्माण संगरमरमर पर बडा सूक्ष्म कारीगरी के साथ नक्कासी कर के किया गया है इसे हाथी शाला या हाथी कक्ष भी कहते है हाथीयो को पालिस कर के वास्तविकता को छूने का सार्थक प्रयास किया गया है।
यहॉ 22वें जैन तीर्थ कर भरगवान नेमीनाथ की काले संगरमरमर से बनाई हूई मूर्ति विराजमान है।
पिथलहार
इस मंदिर में जैन धर्म के पहले तीर्थकर श्री ऋषभदेवजी की एक भव्य दिव्य एवं विशाल मूर्ति है जो पीतल एवं अन्य धातुओं से बनाई गई है, इस मूर्ति का वजन 4000 किलोग्राम है। इसी कारण इस मंदिर को पीतलहारा भी कहा जाता है। 1468—1469 में अहमदाबाद गुजरात के भीमशाह द्वारा यह मंदिर बनवाया गया।
पार्श्वनाथ
इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी के मध्य में संघवी मांडलिक और उनके परिवार द्वारा किया गया। इस मंदिर कि तीन मंजिला भव्य इमारत सभी मंदिरो से बडी है। पदमासन मुद्रा में विराजमान श्री पार्श्वनाथ जी दिव्य मूर्ति यहॉ स्थापित है। यहॉ की विषेश बात यह है कि प्रतिवर्ष पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी को सूर्य की पहली किरण सीधी श्यामवर्ण प्रतिमा पर पडती है।
महावीर स्वामी
यह मंदिर 1582 में बनाया गया एवं 1764 में श्रीरोही कलाकारों द्वारा उपरी दिवारो को चित्रित किया गया। यहॉ जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी की मूर्ति स्थापित है एवं यहॉ की नक्काशी पच्चीकारी एवं एक एक आकृति को जीवन्त बनाने में की गई शिल्पकारी, कला एवं भाव अभिव्यक्ति का बेजोड खजाना है जिसमे फूलो,कबूतरो,दरबार के दृश्य नृत्यकीयॉ,घोडे, हाथी व अन्य दृश्यों को बडी भाव भगींमाओं के साथ तराशा गया है।
देलवाड़ा के शेष तीन मंदिर (पित्तलहार मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर और महावीर स्वामी मंदिर) आकार में छोटे हैं लेकिन उपरोक्त मंदिरों की भव्यता से मेल खाते हैं।